कश्मीर का आंखों देखा हाल

 


 


 


 



रोहिण कुमार, श्रीनगर से लौटकर


कश्मीर का धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद बहुत कुछ बदला नजर आ रहा बदलाव उन सरकारी दावों से इतर है, जिसमें यह कहा जा रहा है कि कश्मीर में स्थिति सामान्य है और जनता परिवर्तन को सकारात्मकता के साथ स्वीकार किया है। गौरतलब है कि कई माध्यमों से लगातार ऐसी ख़बरें साथ आती रहीं कि सूबे से अनुच्छेद 370 हटाये जाने की घोषणा के बाद वहां हालात और खराब हुए हैं। लगभग लोग अपने घरों में कैद हैं, उन्हें जरूरी मूलभूत सुविधाएं तक मुहैया नहीं। लिहाजा, 'दुनिया इन दिनों' ने मौजूदा हालात को वहां जाकर अपनी आंखों से देखने-समझने की कोशिश की।


 फरहद ने अपने घर आने की सूचना भिजवाई थी। यात्रा के दौरान वह लगभग शांत ही रहा। मैं उसे बीच-बीच में टोकता रहामें कुछ-कुछ पूछता रहा। विमान के श्रीनगर पहुंचने ने यात्रियों का स्वागत किया, 'श्रीनगर एयरपोर्ट पर है। यह एक डिफेंस एयरपोर्ट है। तस्वीरें खींचना निषेद्ध पहली बार बिना मेरे टोके कहा, 'जेल आगमन पर आपका सिर्फ़ एयरपोर्ट डिफेंस का नहीं है, कश्मीर समूचा ही डिफेंस एयर एशिया की वह फ्लाइट अपने साथ ढेरों अनिश्चतताएं और भय लिए जा रही थी। मैंने ऐसी मनहूसियत भरी यात्रा पहले कभी नहीं की। मेरे बगल की सीट पर बैठा फरहद चार महीने बाद घर जा रहा था। चेहरे पर रत्ती भर का उत्साह नही था उसकी आखिरी बात 3 अगस्त की शाम को अपनी मंगेतर और मां से हुई थी 


श्रीनगर एयरपोर्ट को जैसे किसी सन्नाटे ने घेर रखा बिल्कुल शांत।एयरपोर्ट के भीतर की लगभग दुकानें बंद । मैं और उनसे जगहों पर से इस वक्त पर कश्मीर क्यों आया हूं। प्रेस कार्ड और पहचान पत्र दिखाता और थीं। यात्रियों और सुरक्षाबलों की संख्या बराबर थी। एयरपोर्ट के ठीक बाहर पर कश्मीरियों की भीड़ जमा थी। कुछ जो पहुंचे थे, वे अपनों से गले मिलकर रो रहे थे। उम्रदराज महिला जिसकी उम्र तकरीबन 60 वर्ष रही , उसने फरहद को गले लगाया और उसे चूमने लगी। हृदय विदारक दृश्य था यह। उनके चेहरों की रंगत बता थी कि कुछ असामान्य घटा है.।मैंने फरहद से दिल्ली मिलने का वक्त मांगा और प्रीपेड टैक्सी स्टैंड की तरफ गया। मैं टैक्सी लेकर सीधे प्रेस क्लब पहुंचा। एयरपोर्ट हैदरपोरा क्षेत्र में कुछ दुकानें खुली थीं। बाकी रास्ते में ज्यादातर दुकानों के शटर गिरे थे। जगह-जगह पर सुरक्षाबलों के नाके थे। वे जानना चाहते थे कि मैं दिल्ली से इस वक्त पर कश्मीर क्यों आया हूं। मैं जगह-जगह प्रेस कार्ड और पहचान पत्र दिखाता और उनसे गाड़ी पार होने देने की गुजारिश करता। कुछ जगहों पर वे दिल्ली का पहचान पत्र देखकर रियायत देते। कुछ नाकों पर रियायत नहीं भी मिलती और लगभग तीन से चार किलोमीटर लंबा डायवर्जन लेना पड़ता। हर तीस से पचास मीटर पर दो सीआरपीएफ जवान सड़क के दोनों ओर खड़े थे। रास्ते में मैंने कई तस्वीरें खींची। कैब ड्राइवर गुलजार ने चेताया कि मैं तस्वीरें संभालकर खींचूं वरना परेशानी में पड़ सकता हूं। दरअसल, उनकी हिदायत सही थी। कई दफे सुरक्षाबलों ने फोटोग्राफरों और रिपोर्टरों के कैमरे तोड़ दिये हैं। फोटो डिलीट करवाये जाते हैं। कश्मीर में सुरक्षाबलों द्वारा रिपोर्टरों और फोटोग्राफर्स को सुरक्षाबलों के नाके थे। वे जानना चाहते थे कि मैं दिल्ली इस वक्त पर कश्मीर क्यों आया हूंइंडिया ने क्या किया। कश्मीर परेशान किया जाना नयी बात नहीं है। यह स्थिति उत्तेजक होनी चाहिए थी, लेकिन सामान्य हो चुकी है। मैं गुलजार से घाटी के हालात के बारे में बातचीत करता रहा। रास्ते में हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी के घर के बाहर गुलजार ने गाड़ी थोड़ी धीमी कर दी। उन्होंने गिलानी की घर की ओर अंगुली करते हुए कहा, 'देखो, गिलानी साब का घर। दिखा? जहां तारीक-एहुर्रियत का बोर्ड लगा है। वहीं रहते हैं गिलानी साब।अभी तो लोगों को उनसे मिलने नहीं दे रहे हैं।' आगे उन्होंने कहा, 'गिलानी साब ही हमारे नेता हैं। इन्होंने अबतक जो-जो बातें कहीं, सारी सच साबित हुईं।' मैंने गुलजार से पूछा कि उन्हें वो कौन-कौन सी बातें लगती हैं जो गिलानी ने कहीं और वो सच साबित हुई हैं। 'गिलानी साब कश्मीरियों से कहते रहे हैं कि कितनी भारतपरस्ती कर लो, कुछ फायदा नहीं होगा। आज देखो, इंडिया ने क्या किया। कश्मीर और भारत के बीच जो पुल था आर्टिकल 370, उसे एक झटके में खत्म कर दिया। कश्मीरियों से एक बार पूछ तो लेते।खैर, उन्हें (भारत) कश्मीरी अवाम और राजनीतिक कायदों की कद्र होती तो सालों पहले रेफरेंडम नहीं करवाते!'- गुलजार ने कहा। गुलजार बताते रहे कि कश्मीरी यातनाओं और परेशानियों को झेल रहे हैं। लोगों पर जुल्म ढाया जा रहा है। तकरीबन तीन घंटे में मैं प्रेस क्लब पहुंच सका। आमतौर पर दस किलोमीटर का यह रास्ता आधे घंटे में तय किया जा सकता था। प्रेस क्लब में पत्रकारों की बतकही चल रही थी। उनमें कुछ मेरे पत्रकार मित्र भी शामिल थे। एक फोटोग्राफर मित्र ने हाथ मिलातेहुए कहा, 'वेलकम टू हेल।तुम क्यों मरने आये हो यहां?' एक अन्य ने मिलते ही पूछा, 'वापसी कब है तुम्हारी? जाने के पहले मिलकर जाना। तस्वीरें और वीडियो पेन ड्राइव में है, मेरे ऑफिस में जमा करा आना।' प्रेस क्लब में पत्रकार मित्रों से बातचीत में एक बात बिल्कुल स्पष्ट हो गयी थी कि 'भारतीय मीडिया' के लिए माहौल मुफीद नहीं है। स्थानीय पत्रकारों में कथित मेनस्ट्रीम मीडिया के लिए गुस्सा है ही, लोगों का भारतीय मीडिया के प्रति तनिक भी विश्वास नहीं है। कश्मीरियों के मुताबिक अनुच्छेद 370 हटने के बाद से ही जुमे की सामूहिक नमाज को सरकार ने अनुमति नहीं दी है। इस वर्ष सरकार ने ईद-उल-अजहा के सामूहिक नमाज को भी नहीं होने दिया। मुहर्रम के जुलूस निकाले जाने की भी अनुमति नहीं मिली। मौलवियों को सरकार ने हिदायत दी कि वे मस्जिद के लाउडस्पीकर से किसी भी तरह की राजनीतिक टिप्पणियां न करें। एक बुजुर्ग कश्मीरी ने बताया, 'पहले भी सरकार और प्रशासन सामूहिक नमाज को वक्त-बेवक्त रोकती रही है। पर पहले इस तरह की पाबंदियां खासकर श्रीनगर और शहरी क्षेत्रों में होती थी। मेरी याद्दाश्त में यह शायद 1990 के बाद हुआ है कि दूर-दराज के गांवों में भी लोगों को मस्जिद में नमाज पढ़ने नहीं दिया गया। बुजुर्ग कश्मीरी की बात से अन्य कश्मीरी भी सहमति जताते हैं। एक व्यक्ति (42) ने कहा, 'कश्मीरी मुसलमानों को धर्म का अनुपालन करने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है।' यह कहते हुए आगे उसने जोड़ा, 'हालांकि अब जब कश्मीर का भारत के संविधान से राबता ही नहीं रहा, तो कैसे धार्मिक अधिकारों की उम्मीद की जाएगी।वो (सरकार) जितने जुल्म ढाहना चाहे, ढाहे।आज़ादी के लिए कुर्बानियां देनी ही पड़ती हैं।' प्रेस क्लब में सूचना मिली कि सरकार की पाबंदी के बावजूद श्रीनगर के हसनाबाद क्षेत्र में रैनावारी धर्मशाला चौक पर शिया मुसलमान मुहर्रम का जुलूस निकालने वाले हैं। सुगबुगाहट थी कि यह जुलूस हिंसक भी हो सकता है। प्रशासन जुलूस को बहुत सख्ती से निपटेगा, इसका अंदाजा था। चूंकि प्रशासन की पाबंदी के बावजूद शिया मुसलमान । इस जुलूस को निकाल रहे थे, यह कश्मीरियों के लिए प्रतिरोध का भी परिचायक था। पत्रकार साथियों ने मुझे जुलूस स्थल पर हालात बिगड़ने के आसार के मद्देनज़र कुछ बहुत ज़रूरी सलाह दी। । हमने लड़कों को बताया कि हम अंतरराष्ट्रीय जुलूस के रास्ते को सुरक्षाबलों ने बंद कर दिया था। सैकड़ों जम्मू-कश्मीर पुलिस, सीआरपीएफ और सेना के जवान तैनात थे। दूसरी तरफ काला कुर्ता पहने सैकड़ों नौजवानों का जत्था कर्बला को याद करते हुए मर्शिया गा रहा था। मर्शिया गाते हुए जुलूस धीरे-धीरे आगे भी बढ़ रही थी। पुलिस लगातार अपील कर रही थी कि जुलूस आगे न बढ़े। जुलूस आगे बढ़ती जा रही थी। मीडिया लोग पहले पुलिस के नाकों की तरफ खड़े होकर तस्वीरें लेने की कोशिश कर रहे थे।कहीं भी एक पल का इत्मीनान नहीं था कि पत्रकार अपने फोन या नोटबुक में कुछ ड्राफ्ट कर लें या फोटोग्राफर अपनी खींची हुई फोटो को एक बारी देख ले। जुलूस और पुलिस दोनों की ही गतिविधियों पर मीडिया को चौकन्ना रहना था। हमला किसी भी ओर से हो सकता था। जम्मू-कश्मीर पुलिस जवान फोटोग्राफरों को फोटो न खींचने की हिदायत रहे थे। भाषा हिदायत और चेतावनी की कम, धमकाने की ज्यादा थी। अचानक से जुलूस के बीच में से कुछ नौजवानों का समूह सुरक्षाबलों की ओर भागा। फटफट जैसी धमाके की आवाज़ हुई। पुलिस ने जुलूस पर पैलेट चलाया था।लोगों में भगदड़ मची। जुलूस में मौजूद नौजवान पीछे हुए लेकिन भीड़ उत्तेजित हुई।लग रहा था जैसे सुरक्षाबलों के साथ भिड़त को वे तैयार हैं। एक झटके के साथ मेरे टी-शर्ट को पीछे से एक फोटोग्राफर साथी ने खींचा। उन्होंने जुलूस की ओर भागते हुए कहा, 'रन, रन..राशिद खान इज देयर।' मुझे सिर्फ इतना समझ आया कि मुझे भागना है। तब उनके राशिद खान इज देयर' कहने का मतलब मुझे समझ में नहीं आया। दरअसल, राशिद खान रैनावारी थाना क्षेत्र स्टेशन हाउस अफ़सर (एसएचओ) हैं। उनके बारे पत्रकारों के बीच मशहूर है कि वे पत्रकारों के लिए खतरा हैं। वे पत्रकारों पर जबरन लाठीचार्ज करवाते हैं। फोटोग्राफर फोटो खींचने न पायें, इसके लिए अपशब्द और थाने में पत्रकारों को देर-देर तक बैठाने जैसे हथकंडे अपनाते हैं। उनके आदेश पर पुलिस जानबूझकर कैमरों पर लाठी से हमला कर देती है।रैनावारी आदेश संदेश रैनावारी में भी वही हुआ, जिसका भय पत्रकारों था। एसएचओ राशिद खान के आदेश पर पत्रकारों पर लाठीचार्ज करवाया गया। जिस रैनावारी में भी वही हुआ, जिसका भय पत्रकारों को था। एसएचओ राशिद खान के आदेश पर पत्रकारों पर लाठीचार्ज करवाया गया। जिस फोटोग्राफर साथी ने मुझे भागने का संदेश दिया, वे लाठियों से गंभीर रूप से चोटिल हुए। एक अन्य फोटोग्राफर साथी के कैमरे पर पुलिस ने लाठी से प्रहार कर तोड़ दिया। बहुत सारे अन्य पत्रकार साथियों को हल्की-फुल्की चोट आयी। भगदड़ के दौरान कुछ पल के लिए मैं और मेरे साथ एक और गैर-कश्मीरी पत्रकार बाकी कश्मीरी पत्रकारों के ग्रुप से बिछड़ गये थे। स्थानीय लड़कों के एक समूह ने हम दोनों को भारतीय मीडिया का प्रतिनिधि समझकर घेर लिया। हमारे बाल खींचे और धक्का-मुक्की की। हमने लड़कों को बताया कि हम अंतरराष्ट्रीय प्रकाशकों के लिए लिखते हैं। ऐसा बोलकर हम उन्हें यक़ीन दिलाना चाहते थे कि हम वही लिखेंगे, जो हम देखेंगे। हम बाकी भारतीय चैनलों के जैसे कुछ भी मनगढंत लिखने या बोलने नहीं जा रहे। वह तो बेहतर हुआ कि कुछ ही मिनटों में एक फोटोग्राफर साथी तुरंत हम तक पहुंच गये और कश्मीरी में कुछ कहते हुए हमें खींचकर बाहर सुरक्षित जगह ले गये। मैं अंदर से हिल गया था। हालांकि वापस प्रेस क्लब में मुझे एहसास हुआ कि यह बाकियों के लिए सामान्य घटना है। वे हर रोज़ भीड़ के गुस्से और सुरक्षाबलों की बर्बरता के बीच पत्रकारिता करते हैं। उन्होंने कंफ्लिक्ट जोन में काम करने के लिए खुद को तैयार किया है। एक कश्मीरी स्वतंत्र पत्रकार जो 'न्यूयॉर्क टाइम्स' के लिए भी लिखते हैं, ने -कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा बताया, 'तुम दिल्ली वालों को एक-आध ऐसे अनुभव होने चाहिए। पता तो चले वहां कि भारतीय मीडिया की करतूतों का खामियाजा किसे उठाना पड़ रहा है।' कश्मीर वाला' मैगज़ीन के इडिटर-इन-चीफ फहद शाह ने कहा, 'दिल्ली में एक पत्रकार को ट्वीट करने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस उठा ले जाती है। सिद्धार्थ वरदराजन, राजदीप सरदेसाई, रवीश कुमार सारे नामचीन पत्रकार उस पत्रकार के पक्ष में लिखना बोलना शुरू कर देते हैं। ट्विटर ट्रेंड करने लगता है। मीडिया की स्वतंत्रता पर हमला हो जाता है। लेकिन हर रोज़ कश्मीरी पत्रकार जान जोखिम में डालकर रिपोर्ट लिखता है, फोटोखींचता है- उसके बारे में दिल्ली के पत्रकारों को चिंता नहीं होती।' फहद ने हाल में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गये काजी शिबली के बारे में बताया29 वर्षीय काजी शिबली'कश्मीरियत' वेबसाइट के संपादक हैं। 25 जुलाई को शिबली को अनंतनाग के शेरबाग थाने बुलाया गया था। कश्मीर में पत्रकारों के लिए थाने बुलाये जाना रूटीन कार्य जैसा है। इसके लिए कोई नोटिस नहीं दिया जाता। दोस्त-यार के माध्यम से पुलिस संदेश भिजवा देती है कि फलां को थाने भेज दो। उस दिन शिबली को भी लगा कि यह रूटीन काम ही है। वे घर के ही कपड़ों में थाने चले गये। पहले तो पुलिस ने शिबली के बारे में कुछ भी जानकारी होने की बात से इनकार किया। अगस्त के आखिरी दिनों में शिबली के परिवार को गिरफ्तारी के दस्तावेज़ दिये गये। 'हफिंगटन पोस्ट' को शिबली की बहन काजी इरम ने बताया कि पुलिस द्वारा भेजे गये दस्तावेज़ के मुताबिक काजी शिबली को पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) 1978 के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया है। मीडिया रिपोटों के अनुसार, 5 अगस्त के बाद तकरीबन दो से चार हज़ार कश्मीरियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। इरम ने 'हफिंगटन पोस्ट' को बताया कि काजी की वेबसाइट पर एंटी-नेशनल रिपोर्ट छापने के आरोप लगाये गये हैं। 'क्या यह आपको मीडिया की अभिव्यक्ति पर हमला नज़र नहीं आता? या दिल्ली वाले पत्रकारसेलेक्टिव आउटरेज के धुरंधर हैं?', फहद ने मुझसे पूछा___ फहद, स्थानीय पत्रकारों और आम कश्मीरियों से बातचीत में मैंने महसूस किया । कि वे भारत में कश्मीरी महिलाओं पर हो रही अभद्र और अश्लील टिप्पणियों से खासा । नाराज थे भारत की बड़ी आबादी क्यों कश्मीरी महिलाओं पर हो रही अभद्र टिप्पणियों पर खामोश है, क्यों नहीं पूरे प्रदेश को नज़रबंद किये जाने के ख़िलाफ़ भारत के लोगों में गुस्सा है- ये सवाल कश्मीरियों के मन में प्रबल है। 'डेढ़ महीने से घाटी में इंटरनेट और फोन बंद हैं। लाखों लोगों का अपने परिवारों से संपर्क टूट गया है। क्या दूसरे राज्यों के नागरिक अपने प्रदेशों में दो-चार दिन भी ऐसा होने देना चाहेंगे?', फहदने मुझसे पूछा। कश्मीर में इंटरनेट बंद होने के कारण सूचनाओं के प्रसार की संभावनाएं बेहद मिलने सीमित बची हैं। यह एक बड़ा कारण है कि स्थानीय पत्रकारों को भी ज़रूरी जानकारियां मिलने में गंभीर दिक्कतें आ रही हैं। मैंने अपनी ओर से देश भर में हो रहे छिटपुट सभाओं की जानकारी स्थानीय पत्रकारों को दी। उन्हें बताया कि दिल्ली के स्मृति भवन में अनुच्छेद 370 हटाये जाने के संबंध में होने वाली गोष्ठी को पर रद्द करवा दिया गया था। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रिहाई मंच संबंधित कार्यक्रमों के बारे में बताया। यह भी कि पूर्व प्रोफेसर और सामाजिक डॉ.संदीप पांडेय को यूपी पुलिस ने प्रतिरोध सभा में भाग लेने नहीं दिया। स्थानीय पत्रकार मोहम्मद दाऊद ने मुझे श्रीनगर के सौरा में विरोध मार्गों तस्वीरें दिखायी। उन तस्वीरों में प्रदर्शनकारियों ने 'बीबीसी और अल-जजीरा के तख्त उठा रखे थे। कश्मीर के अलग-अलग इलाकों में लोगों ने एक स्वर चैनलों को प्रोपेगैंडा का माध्यम बताया। डाउनटाउन के एक निवासी ने गुस्से तक कह दिया कि अगर ग़लती से भी आजतक, एबीपी, जी न्यूज़ के रिपोर्टर तो वह उन्हें दौड़ा-दौड़ाकर पीटेगा। 'सारी दुकानें बंद, सड़कों पर सन्नाटा, स्कूल सड़कों पर सिर्फ़ सुरक्षाबल और कंटीले तारों से जगह-जगह घेराव, एंबुलेंस में दिक्कत आ रही है और ये अपने चैनल में बताते हैं कि कश्मीर में हालात अगर ऐसी हड़ताल की स्थिति सामान्य ही होती है, तो क्यों ये चैनल वाले दिल्ली दिन के किसान मार्च पर भी बौखला जाते हैं? बताने लग जाते हैं कि एक दिन का कितना नुकसान हुआ। यहां हड़ताल को डेढ़ महीने से ज्यादा का वक्त होने है, आप खुद ही सोच सकते हो व्यापार का किस कदर नुकसान हो रहा होगाये भारतीय मीडिया क्यों नहीं दिखाती है? क्योंकि वे सब मोदी को खुश करने उसने कहा। भारतीय मीडिया के बड़े हिस्से की कश्मीर रिपोर्टिंग को लेकर कश्मीरियों मन में भयानक गुस्सा है जिसकी कई झलक मैंने अनुभव किये। उन्हें लगता सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाकर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) पूरा किया है। लेकिन ये भारतीय मीडिया क्यों सबकुछ जानकर भी झूठ और कारोबार कर रही है। अगर यही करना है तो खुद को मीडिया क्यों कहती है? के जवान सिर्फ़ ऑर्डर फॉलो करते हैं, वैसे ही वे भी साफ कहें कि वे सिर्फ़ मोदी के आदेशानुसार कार्यक्रम चलाते हैं, एक कश्मीरी शोधकर्ता ने कहा। कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन, उत्पीड़न और दुर्व्यवहार किये जाने कहानियां हैं। एमनेस्टी और जम्मू-कश्मीर कोलिशन फॉर सिविल सोसायटी सोसायटी गुस्से रिपोर्टर सन्नाटा, एंबुलेंस हालात दिल्ली में कश्मीरियों होगा करने में कश्मीरियों लगता है )घाटी में उत्पीड़न और मानवाधिकार उल्लंघन की बात सबसे पहले की जम्मू और कश्मीर पीपल्स मूवमेंट (जेकेपीएम) युवा कश्मीरी नेत्री शेहला राशिद ने। शेहला के पहले किसी ने भी खुलकर सुरक्षाबलों द्वारा कश्मीरियों को टॉर्चर किये जाने की बात नहीं कीस्थानीय लोगों के मुताबिक इसके दो कारण हैं। पहला, इंटरनेट और फोन बंद होने की वजह से घाटी से संपर्क करना मुश्किल है। दूसरा, सुरक्षा के दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर स्थानीय पत्रकार उत्पीड़न की कहानियां लिखने व बताने में हिचकिचाते हैं। घाटी के कई क्षेत्रों में लोगों ने बताया कि सुरक्षाबल ग्रामीणों पर जुल्म ढा रहे हैं। नौजवान लड़कों को बुरी तरह से पीटा जा रहा है। यातनाएं दी जा रही हैं। दक्षिण कश्मीर के ग्रामीण इलाके में रहने वाले एक व्यक्ति ने बताया, 'रात में गांव को सुरक्षाबलों ने घेर लिया। लगभग हर घर से लड़कों को निकालकर सुरक्षाबलों ने राउंडअप किया।कुछलड़कों को उनके गांव से दूर दूसरे बाहरी क्षेत्र में ले जाया गया। वहां दूसरे गांवों के लड़के भी थे। उन्हें लाठी से पीटा गया। उनके गुप्तांगों में मिर्च रगड़ी गयी। जब वे बेहोश हो जाते तो उन्हें होश में लाने के लिए बिजली के करंट दिये जाते। एक दूसरे व्यक्ति ने साथी पत्रकार को बताया, 'जब सुरक्षाबल) हमें टॉर्चर करते थे, हम बस यही चाहते कि वे हमें गोली मार दें।दर्द इतना था कि हम अल्लाहताला से गुजारिश करते थे कि वे हमें इससे मुक्ति दे।' उसने बताया कि सेना के जवान उनसे पत्थरबाजों के पूछते थे। 'मैं उनसे चीख-चीखकर कहता रहा कि मासूम हूं। पत्थर नहीं फेंकता। पर वे नहीं सुने। जब चीखता तो वे मुंह भी बंद कर देते कि आवाज़ बाहर न जाए', उसने कहा। ये लड़के और इनका परिवार अपनी पहचान किसी सूरत में जाहिर नहीं होने देना चाहते। वे तस्वीर खींचे जाने से घबराते हैं। उन्हें भय है कि अगर किसी भी तरह सुरक्षाबलों को यह मालूम लग जाए कि उन्होंने टॉर्चर के बारे में मीडिया को बताया है तो समूचे परिवार पर भयंकर आफत आ सकती है। मैं सेना और सरकार के अधिकारियों से इन दावों की पड़ताल करने में असफल रहा। सेना ने कुछ प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय संस्थानों को घाटी में कश्मीरियों के साथ टॉर्चर के सिलसिले जवाब में कहा, 'सेना पर लगाये जा रहे इस तरह के आरोप तथ्यहीन और भ्रामक हैं। राज्य के गवर्नर सत्यपाल मलिक ने भी मानवाधिकार उल्लंघन और सेना द्वारा उत्पीड़न की वारदातों का सिरे से खंडन किया है। ___18 अगस्त को जेकेपीएम नेत्री शेहला राशिद ने कश्मीर के हालात पर एक ट्विटर थ्रेड लिखा। उसके एक ट्वीट में उन्होंने लिखा कि सेना के जवान रात को घरों में घुसकर लड़कों को उठा रहे हैं। घर की तलाशी ली जा रही है। जान-बूझकर चावल को तेल के साथ मिला दिया जा रहा है। (https://twitter.com/Shehla_ Rashid/status/1162974930339713024) अगले ट्वीट में शेहला ने दक्षिण कश्मीर के शोपियां में सेना के कैंप में कश्मीरी लड़कों के उत्पीड़न का ज़िक्र किया। शोपियां में चार लड़कों को सेना के कैंप में बुलाया गया और उन्हें यातनाएं दी गयीं। उन लड़कों के करीब माइक रखा था ताकि उनकी चीखें सुनकर इलाके के लोग डरें।इस घटना के बाद से क्षेत्र में भय का माहौल है। ट्वीट से आहत होकर सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता आलोक श्रीवास्तव ने शेहला पर भारतीय सेना की छवि खराब करने की कोशिश करने के लिए मुकदमा दर्ज करवा दिया। 6 सितंबर को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने शेहला के ऊपर भारतीय दंड संहिता की धारा 124-अ (राजद्रोह), 153-अ (धर्म, समुदाय, जन्म स्थान, हालात बिना सामान्य हुए हमें कोई रास्ता नज़र बताया। भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्यता), और 153 (दंगा भड़काने की कोशिश) के तहत मामला दर्ज किया। फिलहाल शेहला राशिद को दिल्ली के पटियाला हाऊस कोर्ट से अंतरिम राहत मिली कश्मीरियों को शाह फैसल और शेहला राशिद जैसे नये नेताओं से ज्यादा उम्मीद नहीं है। जनसंचार के माध्यम बंद होने के कारण उन्हें पता भी नहीं है कि राजनीति में क्या घट रहा है। मैंने कुछ कश्मीरियों को शेहला राशिद के ट्वीट करने पर लगे मुकदमे के बारे में बताया और उनसे प्रतिक्रिया जाननी चाही। पिप्लस डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के एक उम्रदराज कार्यकर्ता ने बताया, 'शेहला ने ग़लत कुछ भी नहीं लिखा। सेना, सीआरपीएफ, पुलिस और एजेसियों ने हमारा जीना मुहाल कर दिया है। अभी वे लड़कों को उठायेंगे, उन्हें टॉर्चर करेंगे तो वो बंदूक ही उठायेगा। बुरहान को इन्होंने (सुरक्षाबलों) ऐसे ही तैयार किया था।' कथित टॉर्चर पीड़ितों को परिवार अस्पताल ले जाने भी बचती है। परिवारों के मुताबिक ग्रामीण अस्पतालों पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। बेहतर इलाज के लिए श्रीनगर जाना पड़ता है। कश्मीर में कॉमर्शियल गाड़ियां पूरी तरह ठप्प हैं। पीड़ितों को अस्पताल न ले जाने का उससे महत्वपूर्ण कारण है कि अस्पताल सुरक्षाबलों और एजेंसियों की सख्त निगरानी में हैं। पीड़ितों का ज़्यादातर इलाज घर पर ही हो रहा है। मोहल्ले-टोले के जानपहचान के डॉक्टर बहुत आग्रह के बाद घर आकर ही मरीज को दवा दे रहे हैं। एक सरकारी अस्पताल के डॉक्टर ने बताया कि दवाओं का बहुत कम स्टॉक बचा । 'वायरल बुखार को एक दो दिन टाला जा सकता । पर वे मरीज जो गंभीर रूप से घायल हैं, उनके लिए लाइफ सेविंग ड्रग्स ज़रूरी है, उसे टाला नहीं जा सकता', डॉक्टर ने बताया। गवर्नर सत्यपाल मलिक लगातार दावा कर रहे हैं कि घाटी में दवाइयों की पर्याप्त सुविधा है। डॉक्टर ने गवर्नर के दावे पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, 'आप पत्रकार हो।अपनी तहकीकात कर लो।' पत्रकार साथी ने मुझे बताया कि श्रीनगर के भी ज़्यादातर सरकारी अस्पताल खाली पड़े हैं। मैं श्रीनगर के श्री महाराजा हरि सिंह सरकारी अस्पताल पहुंचा। वहां सारे बेड खाली पड़े थे। हमने अस्पताल कर्मचारियों से बात करने की कोशिश की। उन्होंने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया।थोड़ा आग्रह करने पर उन्होंने मेरे साथी जो एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय अख़बार के लिए लिखते हैं, उन्हें डॉक्टर से बात करने का मौका दिया। यह मौका उन्हें अंतरराष्ट्रीय और प्रतिष्ठित प्रकाशक होने की वजह से मिला था। मैं भारतीय मीडिया की छवि का नुकसान झेल रहा था। 'फिलहाल हमारा जोर आपातकालीन सेवाओं के लिए दवाएं स्टॉक करने पर है। दवाइयों का स्टॉक तेजी से खत्म हो रहा है। मरीजों को न चाहते हुए भी लौटाना पड़ रहा है। हमारी एंबुलेंस सेवा भी लगभग ठप्प-सी हो गयी है। हालात बिना सामान्य हुए हमें कोई रास्ता नज़र नहीं आता', डॉक्टर ने पत्रकार साथी को बताया। होटल की ओर लौटने के रास्ते में श्रीनगर के एक प्राइवेट अस्पताल के बाहर कई गाड़ियां खड़ी दिखीं। यह मैटरनिटी अस्पताल था। ज्यादातर गर्भवती महिलाएं यहां भर्ती थीं। एक महिला जिसकी उम्र 30 साल थी, उसने कहा, 'अल्लाह का शुक्र है कि मैं ज़िंदा हूं। सुरक्षाबल एंबुलेंस तक को नाकों से पार नहीं होने दे रहे थे। हमारे पति ने उन्हें कपy पास दिखाया, फिर भी नहीं माने।' महिला की सास ने बताया कि सुरक्षाबलों से जब एंबुलेंस को जाने देने के लिए निवेदन कर रही थीं तो एक जवान ने उनके मुंह पर क!पास फेंकते हुए कहा, 'जाओ, घर में डिलीवरी करो।' उस प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टर ने कहा, 'हमारे यहां जो मरीज पहुंच रहे हैं उनपर सच कहूं तो अल्लाह की ही मेहरबानी समझो।बहुत सख्त निगरानी लगा रखी है सुरक्षाबलों ने।हम डॉक्टरों के लिए सरकार ने कयूं पास जारी किया था, उसकी कोई कद्र नहीं है। नाकों पर कप! पास दिखाने के बावजूद जाने नहीं देते।' अस्पताल के एक अधिकारी ने बताया कि वे ज़रूरी दवाओं का इंतजाम करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। अगर अगले चार-पांच दिनों में हम ज़रूरी दवाओं का बंदोबस्त नहीं कर सके तो हमें अस्पताल की कुछ सेवाएं बंद करनी पड़ जाएंगी', अधिकारी ने बताया।



घाटी के ज्यादातर राजनीतिक शख्सियतों को पुलिस ने नज़रबंद कर रखा है। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने उन्हें कपy के मद्देनज़र सुरक्षा का हवाला देकर पुलिस हिरासत लिया है। जम्मू और कश्मीर के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों (उमर अब्दुल्लाह और महबूबा मुफ्ती) को पुलिस हिरासत में रखा गया है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को पहले पुलिस ने हाउस अरेस्ट में रखा।फिर 15 सितंबर को उनपर पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) लगा दिया। यह भी इत्तेफाक ही है कि पीएसए कानून को 1978 में फारूक अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला लेकर आये थे। वर्ष 2019 में फारूक अबदुल्ला ही उस कानून की चपेट में आ गये हैं। गुपकार रोड स्थित फारूक अब्दुल्ला के आवास को सब-जेल में तब्दील कर दिया गया है। वहीं दूसरी तरफ उमर और महबूबा को हरि निवास में रखा गया है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक डल झील के किनारे सेन्टॉर लेक व्यू होटल में तकरीबन 200 नेताओं को हिरासत में रखा गया है। इसके अलावा कुछ नेताओं को उत्तर प्रदेश की जेलों में भी ट्रांसफर किया गया है। श्रीनगर में हिरासत में लिए गये नेताओं के परिवारों को कुछ औपचारिकताएं पूरी करने के बाद मिलने की इजाज़त मिलती है। परिवार के सदस्यों के अलावा किसी भी अन्य को मिलने की इजाजत नहीं है। पत्रकारों के लिए राजनीतिक बंदियों के बारे में सूचना लेने का एक ही जरिया है- उनके परिवार।मैं शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस सेंटर पहुंचा। वहां बीस-पच्चीस लोगों की भीड़ जमा थी। यह राजनीतिक बंदियों के परिवारों के सदस्य थे। मैं उनमें से कई परिवारों से बात करने की कोशिश करता रहा।लेकिन वे मुझे भारतीय पत्रकार जानकर बात करने से बचते रहे। एक पूर्व पीडीपी विधायक के दामाद ने बताया कि उनके ससुर 5 सितंबर की देर शाम को पुलिस ने हिरासत में लिया। 'हमें सिर्फ ये बताया गया शहर में कयूं है और इनकी सुरक्षा के मद्देनज़र इन्हें हिरासत में लिया जा रहा', पूर्व पीडीपी विधायक के दामाद ने बताया। उसने आगे बताया, 'बहुत दिनों तक परिवार को उनसे (विधायक से) मिलने नहीं दिया जा रहा था। एक महीने से ज्यादा का वक्त बीतने बाद उन्हें आज पंद्रह मिनट तक मिलने दिया गया। वे शांत पड़ गये हैं। उन्होंने ज्यादा कुछ बात नहीं की।वे अपना ज़्यादा समय कुरान और क़िताबें पढ़कर बिता रहे हैं।' जब मैं शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस सेंटर के बाहर की कुछ तस्वीरें लेने लगा, तभी एक सीआरपीएफ का जवान चीखा, 'फोटो मत खींचो। क्या दिक्कत है आपको? किनसे मिलने आये हैं आप?' कहते हुए वह करीब आ गया।मैंने उसे अपना नाम बताकर प्रेस कार्ड दिखाया।दिल्ली का पहचान पत्र देखकर उसका रुख थोड़ा नरम हुआ।उसने कहा, यहां सब ठीक है।शांति है।लोग खुश हैं।क्यों आपलोग यहां माहौल खराब करने आते हैं?' गेट के बाहर खड़े राजनीतिक बंदियों के परिजन मेरी ओर देखने लगे। 'हां, बिल्कुल यहां सबकुछ ठीक है। आप तो दिखाते ही हो कि यहां सबकुछ नॉर्मल है', राजनीतिक बंदियों के परिजनों में से किसी एकने धीमे स्वर में कहा। राजनीतिक अनिश्चितता के बारे में कश्मीरियों की आम समझ बनती दिख रही है अनुच्छेद 370 खत्म करके भारत ने दुनिया को यह संदेश दे दिया है कि वह एक साम्राजवादी ताक़त हैऔर कश्मीर उसका उपनिवेश है। राजबाग इलाके में एक शख्स कहा, 'कश्मीरियों ने वोट दिया, नेता चुना। भारत और कश्मीर के बीच जो विशेष कॉन्ट्रैक्ट संविधान में लिखा था, उसे ही भारत ने खत्म कर दिया। तो अब कौन सा नेता बचा? अच्छा हुआ कि हम कुछकश्मीरीजो भारत में तमाम खामियों के बावजूद भरोसा रखते थे, उस भ्रम को तोड़ दिया। अब चीजें स्पष्ट हैं- आर या पार।' 'जिस पीडीपी के साथ भाजपा ने सरकार बनायी, उसके नेता को भी नहीं छोड़ा। सब हिरासत में हैं। पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस सबने भारत के साथ मिलकर कश्मीरियों साथ मज़ाक किया', एक अन्य व्यक्ति ने जोड़ा। एक तीसरे व्यक्ति ने कहा, 'जब ये -इंडिया रहकर अपनी राजनीति करने वाले नेता ही उनके (भारत) न रहे, तो बाकी कश्मीरियों की बात तो अब छोड़ ही दो। यहां हर एक घर ज्यादतियों से मरहम लगाने की जगह फौज के बल पर कश्मीर को कब्जे में करना चाहता कश्मीर की राजनीति में बने वैक्यूम को पूरा कर रहे हैं मिलिटेंट्समिलिटेंट्स को लेकर सहानुभूति का भाव है। ऐसा इसीलिए क्योंकि लोगों कि नेताओं ने बहुत सारे राजनीतिक पैंतरे किये, उसका कोई फायदा नहीं हुआउन मिलिटेंट्स को 'फ्रीडम फाइटर्स' बताने से गुरेज नहीं करते। कश्मीर में फ़र्क आया 5 अगस्त के बाद। मैं पहले भी कश्मीरियों से मिलिटेंसी को राय जानता रहा हूं। कभी उन्हें एक स्वर में मिलिटेंसी को लेकर समर्थन देते आपसे सुरक्षाबलों द्वारा किये जा रहे उत्पीड़न की बात कहते।वे आपसे उन ज़िक्र करते कि कैसे सुरक्षाबलों की बर्बर कार्रवाई लड़कों को हथियार उठाने करती है। इस बार मैंने महसूस किया कि कश्मीरी अवाम राजनीतिक वादाखिलाफ़ियों और कथित अत्याचार से हताश हो चुकी है। वे कहते हैं, 'कितनी कोशिशें अब एक ही सॉल्यूशन बचा है- गन सॉल्यूशन।' श्रीनगर के सौरा में अनुच्छेद 370 खत्म किये जाने के ख़िलाफ़ लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। उन प्रदर्शनों में 'वन सॉल्यूशन, गन सॉल्यूशन-गन सॉल्यूशनलगाये गये हैं। दुकानों की शटर और दीवारों पर बुरहान वानी के पोस्टर श्रीनगर के कई इलाकों में मैंने बुरहान को संबोधित करने वाले संदेश हाइवे पर लगे देखे.। ऐसा लगता है मानो कुछ बातें हर बातचीत में आ रही ऑक्युपेशन इन कश्मीर', 'आज़ादी', 'जुल्म', 'इंडियन मीडिया का प्रोपेगैंडाआर या पार' आदि। वे कहते हैं, 'जो करना है एक बार में करो। धीरे-बेहतर है एक बार में ही उड़ा दो। प्रेस क्लब में शोपियां के एक स्थानीय पत्रकार ने बताया कि उनके जानकारी के मुताबिक दक्षिण कश्मीर के कई इलाकों में मिलिटेंट्स ने लोगों बनाये रखने की अपील की है। कश्मीर के अलग-अलग इलाकों में लोगों करते हुए लगा कि वे अंदर से बहुत भरे हैं। बहुत कुछ अभिव्यक्त करना लेकिन उन्हें अभिव्यक्त करने नहीं दिया जा रहा है। इस स्थिति को एक साथी कहते हैं, 'कश्मीरी फटने का इंतज़ार कर रहे हैं। जिस तरह के हालात कश्मीर हैं, डर है कि कहीं कश्मीर वापस नब्बे के दौर में नलुढ़क जाए।