कोमा में गए आईपीएस पति को मौत के मुंह से खींच लाई आईएएस पत्नी

हम रू-ब-रू हैं आईपीएस आफिसर निरंजन बबनराव वायंगणकर और उनकी पत्नी  आईएएस ऑफिसर सोनाली पोंक्षके वायंगणकर से। निरंजन डीआईजी साइबर सेल हैं, सोनाली महिला वित्त एवं विकास निगम की एमडी, एवं सेक्रेटरी जीएडी हैं। उनसे गर्मजोशी से बातचीत की आईएएस ऑफिसर डॉ. सुदाम पी खाड़े (एएमडी एमपीआरडीसी एवं एमडी एमपीएसआरटीसी) ने। साथ में ऋतु शर्मा...2009 में गुना में हुए एक गंभीर सड़क हादसे के बाद निरंजन कोमा में चले गए थे। इस दौरान  पत्नी सोनाली ने अद्भुत हौसला कायम रखा और हमेशा यकीन किया कि पति ठीक हो जाएंगे..


सु दाम खाड़े: शुरुआती जीवन और शिक्षा कैसी थी? सोनाली: मैं पुणे से हूं, मैंने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी।


सु दाम खाड़े: शुरुआती जीवन और शिक्षा कैसी थी?

सोनाली: मैं पुणे से हूं, मैंने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। बतौर इंजीनियर एक कंपनी में कुछ दिन जॉब भी किया। साथ ही साथ आईएएस की पढ़ाई भी कर रही थी। मेरा यूपीएससी दो अटेम्प्ट में नहीं हुआ, लेकिन तीसरे अटेम्प्ट में मैंने महाराष्ट्र से टॉप किया। जब सेलेक्शन हुआ तो रात भर नींद नहीं आई थी।

निरंजन: मैं कोल्हापुर महाराष्ट्र से हूं, मैंने सांगली कॉलेज से इंजीनियरिंग की। इंजीनियरिंग के बाद सीधे यूपीएससी की पढ़ाई की और आईपीएस बना।

सुदाम: आप दोनों की शादी कैसे हुई?

सोनाली: मैं जब आईएएस की पढ़ाई कर रही थी, उस वक्त शादी के लिए एक लड़के की बात चली थी जिसका सेलेक्शन आईपीएस के लिए हो चुका था... वो लड़का कोई और नहीं यही (बबन) थे। लेकिन उस समय मम्मी पापा को मेरी शादी करनी नहीं थी तो बात आई गई हो गई। बाद में जब मैं आईएएस बन गई तब फिर किसी के माध्यम से एक और लड़के का रिश्ता आया जो आईपीएस था और पता चला कि वो आईपीएस लड़का भी यही थे (दोनों हंसते हैं)... तब तक इन्होंने भी आईपीएस ज्वाइन कर लिया था, सबको रिश्ता और परिवार अच्छा लगा, शादी पक्की हो गई। हमारी शादी की सबसे अनोखी बात ये है कि कुंडली मिलाते वक्त हमारे 36 के 36 गुण मिले थे जो कि बहुत ही कम संभव होता है।

निरंजन : और उसके बाद सबको लगा था जैसे ये रिश्ता तो ऊपरवाले ने ही बनाया है, शादी पक्की होने के बाद पहली बार हम लोग एक दूसरे को देखने के लिए गुआहाटी में मिले थे क्योंकि मेरी पोस्टिंग उस वक्त वहीं थी।

सुदाम: आपकी हॉबीज़ क्या हैं?

सोनाली: स्कूल के समय फ़िल्में देखना पसंद था, लेकिन नौवीं के बाद सिर्फ पढ़ाई की, अब किताबें पढ़ती हूं।

निरंजन: मुझे क्रिकेट खेलना बहुत पसंद था, मैं कॉलेज की टीम का ओपनिंग बैट्समैन रहा हूं, स्टेट भी खेला हूं।

सुदाम: शादी के बाद का बेस्ट टाइम क्या रहा?

निरंजन: इनके साथ समय बिताना अच्छा लगता था फिर बच्चियां आईं तो लाइफ और भी ख़ुशहाल हुई। प्रोफेशनल लाइफ अच्छी हो गई थी। फिर एक्सीडेंट के बाद जो इन्होंने मेरी मदद की है वह बताता है कि यह मुझे कितना चाहती हैं।

सोनाली: मेरे घर का माहौल काफी अनुशासन वाला था। शादी के बाद इनके यहां आई तो बहुत ही खुला माहौल था, इनके घर आकर महसूस हुआ कि पूरा शहर ही जैसे रिश्तेदार है।

सुदाम: बच्चों की परवरिश में ज़्यादा योगदान किसका रहा ?

निरंजन: हमारी दो बेटियां हैं, परवरिश में मेरा सिर्फ़ दस प्रतिशत रहा, 90 प्रतिशत योगदान इन्हीं का था।

सुदाम: दोनों बच्चियों के फ्यूचर के बारे में क्या सोचा है?

सोनाली: अभी कुछ नहीं सोचा है, हम उन्हें यथार्थ में जीना सिखाते हैं। बड़ी वाली को हम छोटा शेक्सपियर बोलते हैं क्योंकि उसका रुझान लिटरेचर की तरफ है और वो ड्रामा लिखती भी है। छोटी वाली का इंटरेस्ट आर्ट की तरफ ज़्यादा है, लेकिन दोनों ही पढ़ाई में अव्वल हैं।

सुदाम: शादी की सबसे अच्छी बात क्या लगी?

निरंजन: हम हमेशा साथ रहना चाहते हैं...

सोनाली: हमारी पसंद-नापसंद बहुत मिलती है। हालांकि हम दोनों का नेचर काफी अलग है, मैं काफी इंट्रोवर्ट हूं और इनका तो पूरा कोल्हापुर ही फ्रेंड है।

सुदाम: जिंदगी का सबसे बड़ा चैलेंज क्या रहा और उससे कैसे डील किया?

सोनाली: 22 जनवरी 2009 का दिन था। ये एसपी गुना थे, और मैं एनवीडीए डायरेक्टर थी भोपाल में। ये उस दिन एक मीटिंग अटेंड करने आए थे और तकरीबन 12 बजे निकल गए थे। उस दिन 4 बजे मुझे इनके स्टाफ से फ़ोन आया कि इनका मेजर एक्सीडेंट हुआ है। उसी समय मैं गुना के लिए निकलने लगी, लेकिन फिर मुझे बोला गया कि इन्हें इंदौर ले जाया गया है। मैं इंदौर हॉस्पिटल पहुंची तो डॉ. दीपक कुलकर्णी ने इनकी कंडीशन देखने के बाद कहा था कि 'उम्मीद बिल्कुल न के बराबर है, अगर 21 दिन गाड़ी खिंच गई तो आगे भी चल जायेगी'। उस वक्त मुझे मेरी मां ने फ़ोन पर एक बात कही थी, जो मैंने डॉक्टर को भी कही- 'अगर ऊपरवाले को कुछ करना होता तो उसी वक्त कर देता, अगर वो उन्हें बचाकर यहां तक लाया है तो आगे भी वही ले जाएगा'। ये 15 दिन तक बेहोश रहे उसके बाद जब होश आया तो वो मंज़र बहुत डरावना था, क्योंकि इनकी आंखों की दोनों पुतलियां अलग-अलग दिशाओं में चल रही थीं और ये फर्राटेदार अंग्रेजी में क़ानून की धाराएं बोले जा रहे थे। एक पल को ऐसा लगा, जैसे कोई दूसरी आत्मा इनमें प्रवेश कर गई हो। ये किसी को नहीं पहचान रहे थे। जब 28 दिन बाद हॉस्पिटल से डिसचार्ज हुए तब भी बॉडी में कोई मूवमेंट नहीं था, सिर्फ आंखें हिलती थीं। उस वक्त मेरी भी उम्र ज़्यादा नहीं थी, बच्चे भी बहुत छोटे थे। डिस्चार्ज के वक्त डॉक्टर ने कहा था- अब ये मानकर इन्हें घर ले जाइए कि आपके दो नहीं, तीन बच्चे हैं जिनमे ये सबसे छोटे हैं। उस वक्त हमारे पास बहुत लोग आकर तरह-तरह के पूजा अनुष्ठान सुझाते थे, हालांकि मैंने एक भी नहीं माना और भगवान पर भरोसा बनाए रखा। फिर धीरे धीरे इन्होंने चलना फिरना शुरू किया और रिकवर होने में लगभग 1 साल लग गया।

सुदाम: आपको सर की क्या चीज़ें पसंद हैं?

सोनाली: हमेशा फोकस्ड रहते हैं, अनुशासन में रहते हैं और सबसे अच्छा है इनका सकारात्मक रवैया।

निरंजन (बीच में बोलते हुए): जब मेरे पास इतनी अच्छी बीवी है, इतने अच्छे बच्चे हैं, ज़िन्दगी है तो मैं क्यों मायूस रहूं...

सुदाम: आपको मैडम की क्या चीज़ें पसंद हैं ?

निरंजन: एक तो इनकी ब्यूटी, दूसरा अनुशासन और तीसरा ये कि ये जो भी टास्क हाथ में लेती हैं उसे पूरा ज़रूर करती हैं।

सुदाम: पसंदीदा हॉलीडे डेस्टिनेशन?

दोनों: समुद्र का किनारा

सुदाम: आईएएस/आईपीएस नहीं होते तो... सोनाली: कुछ नहीं, क्योंकि वो मैंने वो ऑप्शन ही खत्म कर दिया था

निरंजन: शायद कम्प्यूटर इंडस्ट्री में होता।

सुदाम: ज़िन्दगी के किसी समय में फिर से जाने का मौका मिले तो वो क्या होगा?

सोनाली: इनके एक्सीडेंट से पहले

निरंजन: अभी

सुदाम: आपके जीवन में जो चैलेंज आया था उससे जीवन में क्या परिवर्तन आया ?

सोनाली: कभी-कभी लगता है कि आगे कुछ नहीं है। लेकिन आगे होता ज़रूर है बस उम्मीद रखनी होती है। बुरा वक्त हमेशा नहीं रहता।

निरंजन: क्या याद रखना है ये सीख गया, क्योंकि मैं अपने सारे एनकाउंटर भूल गया हूं, सिर्फ अच्छी चीज़ें याद हैं।

सुदाम: आप क्या नहीं थे जो अब हो गए हैं?

सोनाली: जब मौत को इतने करीब से देखा तो समझ आया कि ज़िन्दगी है तो सब कुछ है।

निरंजन: इन्होंने उस समय इतनी प्रार्थना की कि भगवान मुझे अवॉयड नहीं कर पाया (ठहाका)...